हिन्दी उपन्यास साहित्य जगत में सुरेन्द्र वर्मा जी का योगदान अविस्मरणीय है। एक साहित्यकार अपनी वैयक्तिकता को पिघला कर उसे समाजीकृत रूप में प्रस्तुत करता है। व्यैक्तिकता को निवैयक्तिकता में परिणित करना ही कला है जो पाठकों को मंत्रमुग्ध करती है। समय के सच कोउजागर करने के साथ गुणात्मक साहित्य सदैव प्रासंगिक रहता है तथा जन मानस को आलोक प्रदान करने के साथ दिशा-निर्देश भी देता है। सुरेन्द्र वर्मा भारतीय परम्परा से विषय वस्तु का चयन करके उसको आधुनिक समाज अनुकूल प्रस्तुत करते है। श्री वर्मा जी ने ‘मुझे चाँद चाहिए’ उपन्यास में यथार्थधर्मिता के धरातल पर अनुद्घाटित आयामों को खोजकर अपनी विचारधारा को प्रस्तुत किया है।