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हिंदी भक्ति काव्य धारा में हरियाणा का योगदान

Date : 19 फरवरी, 2020

Venue : बनवारी लाल जिंदल सूईवाला महाविद्यालय, तोशाम, भिवानी, हरियाणा

Conference Proceedings

हिंदी भक्ति काव्य धारा में हरियाणा का योगदान
ISBN : 978-81-94381-60-0
 
 
 
 
प्राचीन समृद्ध एवं गौरवपूर्ण सांस्कृतिक सम्पदा को अपने आँचल में समेटे पवित्र प्रदेश हरियाणा विभिन्नताओं को अपने अन्दर समाहित किए हुए है। इस पवित्र प्रदेश को वैदिक संस्कृति का पालना भी कहा गया है। एक नवम्बर 1966 ई. को एक अलग भारतीय राज्य के रूप में अस्तित्व में आये हरियाणा प्रदेश का इतिहास सुदूर अतीत में पौराणिक युग तक उपलब्ध होता है। हरियाणा प्रदेश की भूमि दर्शन और साहित्य की दृष्टि से सदा ही उर्वरा रही है, जिसमें साहित्य सृजन के प्रथम प्रयास को देखा गया है।
 
इतने सुदीर्घ और समृद्ध इतिहास, दर्शन, चिन्तन और साहित्य की सम्पदा से युक्त हरियाणा की ज्ञान मंजूसा भले ही काल के क्रूर हाथों बिखर गयी हो, परन्तु जो कुछ उपलब्ध है, वह यहां की संस्कृति की वह धरोहर है, जो समृद्धि की ओर संकेत करती हैं। सरस्वती और अन्य आपगाओं के मध्यवर्ती-तटवर्ती भू-भाग ‘ हरियाणा प्रदेश’ को आदि-सृष्टि का उद्गम-स्थल माना जाता है ओर ज्ञान की देवी सरस्वती की तो इस भूमि पर विशेष अनुकम्पा रही है। हमारे लिए हर्ष का विषय यह है कि विश्व के प्राचीनतम उपलब्ध ग्रन्थ ‘ऋग्वेद’ का प्रणयन हरियाणा राज्य की पवित्र भूमि पर हुआ। कहा जा सकता है कि हरियाणा प्रदेश की भूमि ऋग्वेद-काल से ही आर्य-संस्कृति, वैदिक वाड्मय और ब्राह्मण-साहित्य का ज्ञानपीठ रहा है। इसकी समृद्ध और गौरवशाली साहित्यिक परम्परा ऋग्वेद से आरम्भ होकर अन्य वेद-वेदांगों, महाभारत, मारकण्डेय एवं वामन आदि पुराणों, सांख्य दर्शन, अष्टध्यायी, नाट्यशास्त्र, मनुस्मृति, कादम्बरी, प्रियदर्शिका, तत्वसंदेश शास्त्र और महापुराण तक चली आयी है। हिन्दी साहित्य-सृजन में हरियाणा प्रदेश ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
 
हरियाणा प्रदेश का भक्ति साहित्य एवं समाज समृद्ध है। इसमें भारतीय संस्कृति का मौलिक रूप दिखाई पड़ता हे। यह प्रदेश सन्तों एवं भक्तों की साधना स्थली रही है। भक्ति साहित्य की दृष्टि से हरियाणा की धरती का अपना विशेष महत्व है। महाभारत महाकाव्य यहीं लिखा गया और श्रीमद्भगवत् गीता का अमर संदेश यहीं से प्रसारित हुआ। चिन्तन और सृजन की इस धरती पर पुष्पदंत, श्रीधर, सूरदास, कुछ अंशों में गोस्वामी तुलसीदास भी, गरीबदास, संतोख सिंह, निश्चल दास, हाली पानीपत, बालमुकुन्द गुप्त, अममदबख्श थानेसरी, विश्म्भर नाथ शर्मा, लख्मीचंद, जयनाथ ‘नलिन’, विष्णु प्रभाकर, इन्द्रा स्वप्न, ब्रह्मदत्त वाग्मी, रतन चन्द शमा्र, मदनगोपाल, मोहन चोपड़ा, छविनाथ त्रिपाठी, पुरुषोत्तमदास निर्मल, सुगनचन्द मुकेश, लीलाधर वियोशी, राकेश वत्स और स्वदेश दीपक प्रभूति ऐसे धुरन्धर साहित्यकार हो चुके हैं, जिनके योगदान के बिना हिन्दी-साहित्येतिहास की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती। हरियाणा प्रदेश के संत सूरदास, गरीबदास, निश्चलदास, भाई संतोख सिंह, नित्तानंद, जैतराम, आदि संतों ने अपनी अमृतवाणी से हरियाणा की भूमि को संीचा और लोगों को धर्म-परायणता एवं नैतिकता से जीवन जीने की प्रेरणा दी। अतः हरियाणा प्रदेश में साहित्य रचना की परंपरा निरंतर चली आ रही है, जिसमें हरियाणा का नाथ साहित्य, जैन काव्य, संत काव्य, हरियाणा की सूफी संत साहित्य, निर्गुण संतों की हिन्दी भक्ति साहित्य को देन है। 
 
हरियाणा के हिन्दी काव्य का पारम्भिक रूप यहां के जैन तथा नाथ काव्य में प्राप्त होता है। मध्यकालीन भक्ति काव्य की संत, सूफी, राम एवं कृष्ण काव्य परम्पराओं का अनुसरण करते हुए इस धरती पर हरियाणा से युक्त अनेक काव्य-ग्रन्थों का प्रणमन हुआ। अतः हरियाणवी भक्तिकालीन साहित्य का स्वरुप अत्यन्त व्यापक है। हरियाणवीं संतों ने भक्ति-भावना के साथ-साथ तत्कालीन समाज, धर्म व राजनीति के विविध संदर्भों को उठाकर अत्यन्त ओजस्वी वाणी में अपना साहित्य रचना है। हरियाणवी समूचा सन्त साहित्य धार्मिक-सामाजिक चेतना से अनुप्राणित है। हरियाणा का लोक साहित्य, लोक गीत, हरियाणा में रचित प्रबन्ध काव्य, हरियाणा की आधुनिक हिन्दी कविता, हरियाणा की बोलिया, हिन्दी बाल साहित्य, लघुकथा, हरियाणा की पत्र-पत्रिकाएं, उपन्यास, कहानी, नाट्य साहित्य, निबन्ध आदि हरियाणा के हिन्दी साहित्य की शोभा बढ़ा रहे हैं। हरियाणवीं साहित्यकारों ने हिन्दी साहित्य इतिहास में अपनी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
 
ऋग्वेद काल से ही आर्य-संस्कृति, वैदिक वाड्मय और ब्राह्मण साहित्य की ज्ञानपीठ कही जाने वाली हरियाणा की भूमि जो वैदिक काल से प्रवाहित सरस काव्यधारा आज भी हरियाणा की धरती को रस-सिक्त कर रही है, उस हरियाणा प्रान्त का इतिहास एक रूप से उपेक्षित रहा हैं। अर्थात प्रागेतिहासिक काल से लेकर अब तक का इतिहास इस प्रदेश के लिए मूक बना हुआ है। इस संगोष्ठी के माध्यम से हरियाणवीं संत कवियों का समाज में योगदान उनकी उपादेयता और उनकी प्रासंगिकता के संदर्भ में उनके महत्त्व को उजागर कर साहित्य की अभिवृद्धि का प्रयास किया गया है।
शुभकामनाएं सहित।
 
मुख्य सम्पादक
डाॅ. महेन्द्र सिंह
सहायक प्राध्यापक, अध्यक्ष
हिन्दी विभाग
बनवारी लाल जिन्दल सूईवाला महाविद्यालय, तोशाम, भिवानी (हरियाणा)